उध्दमेन हि सिध्दयन्ति कार्याणि च मनोरथः न हि सुप्तस्य सिंहस्य प्रविशंति मृगः प्रयत्नों विधेयः प्रयत्नों विधेय
उपरोक्त विवेचन से सिध्द होता है कि जीवन में परिश्रम का कितना विशाल महत्व हैः-
इस पुस्तक में मैनें अपने अनुभव व ज्ञान के आधार पर मस्तिष्क में आये अपने विचारों के अनुसार समय समय पर लिखे गये लेख कविता, यात्रा के अनुभव व विभिन्न विद्वानों के सुने गये उपदेशों का संकलन प्रस्तुत किया है। मैं केन्द्रीय लोक निर्माण विभाग भोपाल में कनिष्ठ हिन्दी अनुवादक के पद पर वर्ष 1981 से 1995 तक रहा तत्पश्चात् प्रशासनिक शाखा, लेखा शाखा से संबद्ध कार्य करते हुए दि. 30@6@2005 को सेवा निवृत हुआ। कनिष्ठ हिन्दी अनुवादक के पद पर कार्य के दौरान मैंने हिन्दी अनुवाद के अलाबा विभाग में राजभाषा हिन्दी के प्रचार प्रसार का कार्य भी किया। इसी दौरान मेरी हिन्दी कविता, लेख इत्यादि के लेखन के प्रति रुचि जाग्रत हुई। उसी का परिणाम इस पुस्तक में परिलक्षित है। पुस्तक में वर्णित लेख कविताएं मेरे अपने विवेक के अनुसार है और किसी अन्य के विचारों का समावेश कुछ विद्ववानों के उपदेशों के संकलन को छोड़कर इसमें नहीं किया गया है।
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