व्यक्ति का जीवन एक निरंतर चलने वाली यात्रा है। इस यात्रा में अनगिनत पड़ाव आते हैं। जहाँ उसे विवश होकर रुकना पड़ता है। मन से या बेमन से। अतः यह कहना पड़ता है कि जीवन रूपी नदी बहती हुई अच्छे-बुरे स्थानों, पदार्थों से संस्कारित होती हुई अग्रसर हो बहती चली जाती है। इसी भाँति आदमी की जिंदगी भी निश्चित अनिश्चित उपलब्धियों अनुपलब्धियों निंदाओं मंशाओं से असंतुष्ट या संतुष्ट होती हुई अपने पथ पर क्रमिक प्रगति करती हुई व्यतीत होती चली जाती है।
प्रत्येक साहित्यकार का यही उद्देश्य या मन रहता है कि उसकी रचना से श्रोताओं या पाठकों का मन प्रभावित हो और उसकी रचना से समाज में मानवीय मूल्यों की पुनर्स्थापना हो। वह सोचता है कि कभी न कभी उसकी रचना की गूँज व्यक्ति के कानों में गूंजेगी। कोई न कोई सद्विचार उसको प्रभावित करेगा और उसे वह अपनाने का प्रयास करेगा। इसी धुन में संपूर्ण तन्मयता और लगन के साथ कवि या लेखक विचारों के समुंद्र में गहरे गोते लगाकर अनगिनत बहुमूल्य मोतियों को खोज कर जनता के समक्ष प्रत्यक्ष प्रदर्शित करता रहता है।
काव्य लेखन ईश्वरीय कृपा और प्रतिभा पर आश्रित है लेकिन गद्य लेखन में सोच के सागर में डूब कर चिंतन मनन के पश्चात उस विषय से संबंधित कुछ पंक्तियाँ लेखक की कलम से निस्स्रित हो पाती है। विषय की गहराई में लेखक जितना डूबता जाएगा, उससे संबंधित जब विचारों की परतें उसके मस्तिष्क में उभरती है, वह कागज पर उकेरने लगता है। यद्यपि इसमें भी ईश्वर की कृपा और शुद्ध निश्छल हृदय की प्रेरणा तथा मजबूत मनोबल सहायक होता है।
‘गद्यं कवीनाम् निकषं बदन्ति’ अर्थात् गद्य कवियों की कसौटी है। जिस कवि का गद्य जितना सौम्य, शिष्ट व प्रभावी होगा, उतना ही पद्य सुंदर और शालीन होगा।
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