प्राचीन काल से व्यक्ति की पृवति अपने भविष्य के विषय में जानने की रही है। हर कोई अपने कल के लिये चिंेतित और उसे जानने के लिये उत्सुक रहता है। जीवन में आने वाली समस्याऐं और उनका समाधान जानना मुख्य प्रयोजन होता है। इसी लिये प्राचीन सभ्यता से ही इस जिज्ञासा के हल हेतु विभिन्न प्रकार के प्रयास हुए जिनके फलस्वरूप ज्यातिषी, अंक षास्त्र, हस्त रेखा, मुख आकृति, रमल आदि विद्याओं का उद्भव हुआ। टैरो कार्ड़ रीडिगं भी उनमें से एक विद्या है जिससे भविष्य कथन किया जा सकता हे। टैरो कार्ड़ रीडिगं विद्या का उद्भव 13वीं शताब्दी में इटली में हुआ और शीघ्र ही इसका प्रचलन बढ़ता गया। आज यह विद्या संम्पूर्ण विष्व में प्रचलित है। इससे प्रष्न कर्ता अपने किसी भी प्रष्न का उत्तर जान सकता है। यह विद्या सामान्यतः आसान और सुलभ है और इसके परिणाम सटीक व यथार्थ के समीप होने के कारण अत्याधिक लोक प्रिय एवं प्रसिद्ध है। टैरो रीडिगं 78 कार्ड़ के एक समूह द्वारा की जाती है। कार्ड के इस समूह को टैरो डैक कहते है। इन कार्ड़ पर विभिन्न प्रकार के चित्र तथा उन चित्रों में नम्बर और रंग आदि दिये होते है। इन सब में गहरे रहस्य छिपे हुए होते है। एक टैरो रीडर इन रहस्यो को समझ कर इनकी व्याख्या करता है और प्रष्न कर्ता के प्रष्न का उत्तर देता है। उसकी समस्या का उचित निवारण करता है एवं उसकी जिज्ञासा को प्रगट हुए कार्ड़ के उपयुक्त विष्लेषण से शांत करता हे। टैरो रीडिगं भविष्य कथन की एक मात्र प्रणाली है जिसमें गणित का प्रयोग नहीं होता है। इस विद्या में किसी भी प्रकार के गणित की आवष्यकता ही नहीे पड़ती है। यद्यपि यह विद्या आघ्यात्म पर आधारित हैै। इसके लिये टैरो रीडर को शांत भाव और ईष्वर के प्रति अटूट विष्वास एवं समर्पण के साथ कार्य करने की आवष्यकता होती है । वह जितनी गहराई से आध्यात्म में तल्लीन होगा उतना ही अच्छा भविष्य वक्ता होगा, उसका विष्लेषण यथार्थ के समीप होगा और परिणाम सटीक होंगे।
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