महतारी के अँचरा छूटे, जे हमि सेइँन पालिन।
उनखे तेग असीस क कबहूँ,जाँय देब न ख़ालिन।।
मन का हबय भरोसय हमरे,बढ़ी बघेली साँनै।
बांधबेस के किरपा सेरे, पाई नबा बिहाँनै।।
राम कृस्न तीजा तिथ इनमा, मन के ऊबासांसी।
हंसिउ हिबय सपनउ अउ सन्तुक, साथे काटा नासी।।
बिटिआ महतारी बन -बिरबा,अउरिउ खानय पाँनै।
जीमन के हर एक चलन के,कबिता हँईं सकांनै।।
रीझाँ राम सरलतय सेरे,अउ सन्तन के सेबा।
हमैं बिसङ्गति केरे कबिता,भगत भगमांन मेबा।।
आय बघेली बोली आपन,रीमय केरे नेंहै।
सिरिहरि के किरपा ही इनमा, हरिदासउ के नेहै।।
बैजू ,रामदास, सैफू के,इनमा घुरी असीसै।
संभू काकू, सिरी दाहिया,एखा कीन्हिन बीसै।।
आजु बघेली बिन्ध धरा मां, पुनि के मारी बाजी।
गुननिधि धन्न बघेली आपन,बिदुर नीत जुत ताजी।।
सदरय भेंट!
अरुण कुमार पयासी , देवराजनगर
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