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बिहार में अनुसूचित जातियों में चेतना के उद्भव एवं विकास

250.00 Original price was: ₹250.00.200.00Current price is: ₹200.00.

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डॉ. सुजीत कुमार

978-93-90699-31-5

135

A5

Paperback

Nitya Publications, Bhopal

First

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बिहार में अनुसूचित जातियों में चेतना के उद्भव एवं विकास

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Description

भारत विश्व का दूसरा अधिकतम जनसंख्या वाला देश है। भारत की कुल जनंसख्या लगभग 1,369,046,200 है। दलित विचारकों का मानना है कि इसका 35 प्रतिषत भाग दलितों का है। संघात्मक व्यवस्था वाले इस देष में 28 राज्य हैं जिसमें बिहार भी एक राज्य है। बिहार की कुल जनसंख्या 103,804,637 है तथा दलितों की जनसंख्या 13,048,608 है।
भारतीय हिंदू समाज परम्परागत तौर पर चार वर्णों में विभाजित था- ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैष्य एवं शूद्र। श्रम विभाजन की इस व्यवस्था में ब्राह्मण का कर्म पूजा व अध्यापन, क्षत्रिय का शासन व रक्षा, वैष्य का व्यापार तथा शूद्र का सेवा कार्य था। ऐसी मान्यता है कि प्रारम्भ में यह विभाजन कार्य के आधार पर था परन्तु बाद में जन्म के आधार पर हो गया। परिणामस्वरूप शूद्र जातियों में जन्म लेने वालों के लिए सेवाकार्य बाध्यकारी हो गया व उनके ऊपर अनेक निर्योग्यताएँ लाद दी गई जिसके कारण उनके लिए सम्मानपूर्ण जीवन जीना व जीवन में उन्नति करना असंभव हो गया इस वर्ण के लोग अन्य वर्णों से नीचे समझे जाते थे व उनके साथ अन्याय व अपमानपूर्ण व्यवहार किया जाता था, अतः उन्हें दलित कहा जाने लगा। इस वर्ण में वो जातियाँ जो सफाई का कार्य करती थी, उन्हें अन्य लोगों से दूर रहने को बाध्य किया जाता था एवं उन्हें अछूत कहा जाता था।

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