‘लघुकथा से अत्यंत लगाव होने के कारण मैने अपने शोध के लिए ‘लघुकथा का विकास एवम् उपलब्धियाँ’ विषय को pqना । इस विषय को चयन करने का एक कारण यह भी था कि ‘लघुकथा’ विषय पर देवी अहिल्या विश्वविद्यालय से शोध कार्य का न होना।
मैने ‘लघुकथा’ पर विस्तार से लिखने का मन बनाया और अपनी शोध निर्देशिका ‘डॉ. नीहार गीते’ से परामर्श लिया। उन्होंने मुझे ‘मालवांचल की लघुकथाओं’ पर शोध कार्य करने हेतु अपनी सहमति प्रदान की।
इस शोध कृति में नौ अध्यायों में मैने अत्यंत व्यवस्थित रूप से अपनी शोध योजना को मूर्त रूप दिया है। लघुकथा के प्रथम अध्याय में ‘लघुकथा’ की आरंभिक विकास यात्रा का आंकलन किया। द्वितीय अध्याय में ‘लघुकथा’ व ‘कहानी’ में विधागत अंतर प्रस्तुत किया गया है व अन्य बिंदु समाहित है।
तृतीय अध्याय में मालवांचल में लघुकथा को जन्म विषयक अंकन किया गया है। लघुकथाओं पर समय-समय पर आयोजित गोष्ठियों, परिचर्चा, सम्मेलन इत्यादि का भी समावेश किया गया है।
चौथे अध्याय में ‘मालवांचल के पंद्रह प्रतीनिधि लघुकथाकार’ का समीक्षात्मक अध्ययन किया गया है। पांचवे अध्याय में मालवांचल की लघुकथाओं में कथ्य ‘विषय’ छठे अध्याय में ‘शिल्पगत’ विशेषताएं, इन सबका लघुकथाओं के माध्यम से विस्तार से विश्लेषण किया है, जिसमें ‘लघुकथा के सृजनात्मक आयामों को स्पष्ट किया जा सके।
सातवें अध्याय में ‘मालवांचल की लघुकथाओं में समकालीन जीवन एवं उपलब्धियां’ के अंतर्गत लघुकथाओं में नई जीवन दृष्टि’, ‘नये विषय’ ‘प्रादेशिक प्रभाव’ का मूल्यांकन किया गया है।
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