मनुष्य की विकास यात्रा में काव्य सर्जना सबसे महत्वपूर्ण एवं जीवनोपयोगी उपलब्धि है। कविता ने मानव मात्र में सद्भावनायें एवं सदविचार विकसित किये हैं।
आचार्य विश्वनाथ ने अपने ग्रंथ साहित्य दर्पण में “वाक्यं रसात्मकं काव्यम्’ कहकर उसे परिभाषित किया तो कविराज जगनाथ जी ने अपने ग्रंथ मे रसगंगाधर में ” रामणीयार्थ प्रतिपादकम् शब्दकाव्यम कहा। हिन्दी के वरेव्य आचार्य रामचंद्र शुक्ल ने कविता को भी परिभाषित कुछ इन शब्दों में किया। कविता वह साधन है, जिसके द्वारा शेष सृष्टि के साथ हमारे रागात्मक सम्बंध की रक्षा और निर्वाह होता है। इस प्रकार कविता की विभिन्न परिभाषाओं में रसात्मकता, उदात्त भावना आदि तत्वों का सहज समावेश रहता है। कविता के सौंदर्यात्मक तत्वों में भावसौंदर्य, विचार सौन्दर्य, नाद सौन्दर्य एवं अप्रस्तुत योजना सौन्दर्य बहुत महत्वपूर्ण है।
कविता में तुक, लय शब्द योजना, चित्रात्मकता अलंकार इसी प्रकार अनुभूति की सघनता एवं व्यापकता, कल्पनाशीलता, रसात्मकता, सौन्दर्यबोध एवं भावों की उदात्तीकरण काव्य सर्जना के लिए नितात आवश्यक तत्व है।
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