समकालीन हिंदी साहित्य विशेष रूप से 20 वीं शताब्दी के बाद के हिंदी साहित्य को संदर्भित करता है। इसकी प्रमुख प्रवृत्तियाँ निम्नलिखित हैं:
समकालीन हिंदी साहित्य में सामाजिक और राजनीतिक चेतना का स्पष्ट स्थान है। यह साहित्य विभाजन, आर्थिक असमानता, जातिवाद, लिंग-भेद आदि मुद्दों को उठाता है।
समकालीन कविता में व्यक्तिगत और आत्म-मनोविज्ञान की झलक मिलती है। यह साहित्य व्यक्ति के आत्मिक और मानसिक पहलुओं को छूने का प्रयास करता है।
समकालीन हिंदी साहित्य में भाषाई विविधता और प्रयोगशीलता का प्रदर्शन होता है। यह साहित्य विभिन्न भाषाओं और बोलियों का समावेश करता है।
समकालीन हिंदी साहित्य वैचारिक विवादों को उठाता है और नए विचारों और दृष्टिकोणों को बढ़ावा देता है।
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