….लेखक की कलम से….
विकास के क्रम में प्रकृति ने प्रत्येक जीव के गुण-धर्म जटिल कूट संदेषों के रूप में सभी जीवों(प्राणी-वनस्पति) में सहेजे हैं, इन कूट संदेषों को डी-कोड कर उस जीव के विषिष्ट गुणों तथा उस जीव की प्रकृति/मनोवृत्ति की पहचान की जाना संभव है।
प्रकृति का सबसे क्लिष्टतम जीव मनुष्य है और यह क्लिष्टता मनुष्य में उसके अति विकसित मस्तिष्क के कारण संभव हो सकी है जो उसके विचारों और मनोवृत्ति के रूप में अंतर्निहित होते हैं। किंतु बहुत कुछ प्रदर्षित नहीं होता है जिसे बाहरूप से पहचान पाना लगभग असंभव है।
मनुष्य की प्रवृत्ति और पहचान से संबंधित कूट संदेष प्रकृति के द्वारा प्रत्येक मनुष्य में फिंगर प्रिन्ट के रूप में सहेजे हैं जिनका गहन अध्ययन तथा विषलेषण कर व्यक्ति विषेष की न केवल पहचान अपितु प्रवृत्ति का भी सटीक आकलन संभव है।
मध्यप्रदेष पुलिस में अधिकारी तथा फिंगर प्रिन्ट विज्ञान में विषेषज्ञ होने के नाते मेरे मानस में सदैव यह विचार उद्वेलित होता रहता था कि जब फिंगर प्रिन्ट के माध्यम से किसी अपराध में संलिप्त व्यक्ति की पहचान विष्वस्तर पर निर्विविाद रूप से ग्राह एवं पूर्ण विष्वसनीय विज्ञान के आधार पर की जा सकती है तब क्या इसी फिंगर प्रिन्ट विज्ञान के आधार पर किसी व्यक्ति के आपराधिक प्रवृत्ति की पहचान समय रहते स्थापित क्यों नहीं की जा सकती..?
इस दिषा में निर्णायक स्थिति तक पहुंचने हेतु मैंने वर्ष 2016 से 2023 तक लगभग 07 वर्षों के दौरान 1 लाख 74 हजार अपराधीयों के लगभग 17 लाख और समाज के 500 सामान्य व्यक्तियों के लगभग 5000 फिंगर प्रिन्ट की dectylography पर शोध किया जिसके अत्यंत सटीक परिणाम प्राप्त हुये इन परिणामों के आधार पर मैं इस निस्कर्ष पर पहुचा हूं कि फिंगर प्रिन्ट का विषलेषण कर किसी व्यक्ति की अपराधी प्रवत्ति की न केवल पहचान की जा सकती है अपितु, व्यक्ति विषेष भविष्य में किस प्रकार का अपराध कर सकता है यह भी निष्चित किया जा सकता है तथा समय रहते सतर्क होकर किसी अबोध को अपराधी बनने से रोकने का सफल प्रयास किया जा सकता है जो समाज को अपराध मुक्त करने की दिषा में भी एक उचित कदम होगा। मेरी यह निष्चित धारणा है कि अंगुलियों के प्रथम पोरों पर बनी इन आकृतियों में आष्चर्यजनक किन्तु सुनिष्चित, प्रमाणिक और विष्वसनीय जानकारी निहित है।
अंगुलियों में बनी आकृतियों के पैटर्न, विषिष्टतायें और उनसे बने वर्गीकरण का व्यक्ति के चरित्र पर क्या प्रभाव पड़ सकता तथा प्राचीन सामुद्रिक शास्त्र और ज्योतिष शास्त्र के परिणामों से यह अध्ययन कितना साम्य रखता है का तुलनात्मक अध्ययन प्रस्तुत किया गया है। जैसे अंगूठे या अनामिका अंगुलि का आकार प्रकार अथ्वा खूबी व्यक्ति के चरित्र को क्या दिखाती है और फिंगर प्रिन्ट विज्ञान में इस अंगूठे या अनामिका से संबंधित क्या परिणाम दृष्टिगौचर हुये हैं।
अनायास प्रारंभ हुये इस कार्य को परिणिति तक पहुंचाना अत्यंत कठिन रहा, कार्य क्या और कैसा होगा यह भी अनिर्णित सा था लेकिन तत्कालीन अतिरिक्त पुलिस महानिदेषक एससीआरबी माननीय श्री आदर्ष कटियार साहिब, तथा पुलिस महानिरीक्षक श्री मकरंद देउस्कर साहिब के मार्गदर्षन ने पथ प्रस्ष्थ किया। अनेक बार कतिपय समस्यायों के कारण भी कार्य छोड़ना चाहा तब परम मित्र उप पुलिस नर्मदापुरम श्री अनिल राय के द्वारा होसला बढ़ाते हुये कार्य जारी रखसने में मानसिक सहयोग किया जो सदैव स्मरणीय रहेगा। एससीआरबी के निरी. श्री रितुकांत सिन्हा तथा पुलिस मुख्यालय के जनसंपर्क अधिकारी परमस्नेही श्री आषीष तिवारी जी के द्वारा ज्योतिष से संबंधित चर्चा में अनेक तरह के आख्यानों से अध्ययन को ज्योतिष से जोड़कर लिखने को प्रेरित किया इनका सहयोग स्मरणीय रहेगा। अनेक मसलों पर अर्धागंनी रंजना सिंह का योगदान भी भरपूर मिला और मैं इस पुस्तक को पूर्ण करने में सफल हुआ। पहली पुस्तक के साथ ही इस पुस्तक का भी शीर्षक चयन करने में पुत्र दिग्विजय सिंह (एडवोकेट) का ही योगदान है।
फिंगर प्रिन्ट से संबंधित इस षोध को प्रस्तुत करने का मेरा उद्वेष्य पाठकों को इस योग्य बनाना है कि वह स्वयं के और अपने संपर्क में आने वाले लोगों के फिंगर प्रिन्ट वर्गीकरण पढ़ सकें और भविष्य की आपराधिक गति को पहचान कर उससे बच सकें। यदि सभी अभिभावक भी अपने बच्चों के फिंगर प्रिन्ट ग्रुप का अध्ययन कर उसके अनुसार बच्चों को आचरण करने का कहें तो भविष्य में अनेक आपराधिक समस्यायों से बचा जा सकता है। इसी उद्वेष्य की आषा में मेरा यह शोध किसी भी तरह से एक भी व्यक्ति को बदलने में सहायक होता हेै तो समझूंगा मेरा परिश्रम सफल हुआ।
मैं यहां यह भी स्पष्ट कर देना चाहता हूं कि यह शोध कार्य पूर्णतः dectylography (finger print science) के अध्ययन पर आधारित है न कि हस्तरेखा विज्ञान (palmistry) पर।
गणेष सिंह ठाकुर
सहायक पुलिस महानिरीक्षक
रा.अ.अ.ब्यूरो पुमु भोपाल
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