“आकाश तले” रचना उस समय (१९७३ के बाद) की बात है जब हमने आगरा विश्वविद्यालय से हिंदी और इंग्लिश साहित्य में स्नातक की उपाधि प्राप्त कर ली थी।
नई नई उत्साह के साथ कुछ लिखने की उत्सुकता जगी और तब ये आकाश तले लिखा गया. इस उपन्यास में प्रकृति की व्याख्या सरल ढंग से किया गया है और उसी रूप में जैसा देखा वैसे ही दर्शाया गया है।
जब हम कहानी में शहर की तरफ आते है और वहां व्यस्त सडको, ऑफिसेस, कारखानों और भाग-दौड़ की जन्दिगी को देखते हैं तो उनका चित्रण भी सहज और सरल तरीके से ही किया गया है ।
इन्हे बड़ी सरल और सजग दृश्यों को सूंदर और आकर्षक ढंग से पेस किया गया है. एक बार जो पढ़ना प्रारम्भ करेगा उसे ऐसा लगेगा की कहानी को पूरी तरह समाप्त कर के ही छोड़े ।
हमारी शुभकामना आप के साथ सदैव रहे, ये मेरी कामना है ।