क्या यह जरुरी था…..
दोस्तो, क्या यह जरूरी था नामक शिर्षक की यह कहानी दरअसल एक टुटे हुए दिल की आवाज है। आधुनिक महानगरीय समाज मे रिश्तों मे प्रेम और विश्वास की डोर कमजोर होकर टुटती जा रही है। धोखे और अविश्वास की गहरी खाई मे रिश्ते औंधे मूँह गिरते जा रहे है और अफसोस तो इस बात का है कि रिश्ते औंधे मुँह गिरकर खत्म भी हो रहे है। प्रस्तुत कहानी भी एक एसे ही टुटकर बिखर चूके रिश्ते के ईर्द गिर्द ही शब्दो मे पिरोई गई है। तुच्छ स्वार्थ के लिए एक प्रेमिका अपने ईमानदार और सच्चे प्रेमी को दगा देकर गम के समंदर ने डुबो देती है , उसका दिल तोड़ देती है। उसके टुटे हुए तड़पते दिल से बस यही आवाज आती है कि क्या यह जरूरी था प्रिये। हर अंधेरी रात का एक सवेरा जरूर होता है। कुछ इसी तरह तमाम गमो की अंधेरी रातों के बाद एक सवेरा उसकी जींदगी मे एक नई रोशनी लेकर आया। उसके मायुस चेहरे पर मुस्कराहट लेकर आया और मुझे विश्वास है कि यह कहानी भी रीडर्स के चेहरे पर मुस्कान लाने मे जरुर कामयाब होगी।