कलवता में कलव अपने मनोभावों को कलात्मक अलभव्यलि देता है। कलव, कलवता
में अपने भावों को इस प्रकार प्रकट करता है लक वे सवन ग्राह्य हो जाते हैं । पाठक
सोचने लगता है लक ये तो मेरे अपने अनुभव हैं , जो कलव ने अलभव्यि कर लदए हैं ।
पंल त जगन्नाथ के अनुसार, “रमणीयाथन प्रलतपादकः शब्दः काव्यम्” अथानत् रमणीय
अथन का प्रलतपादन करने वाले शब्द को काव्य कहते हैं। काव्य वह वाक्य रचना है
लजसे सुनकर या पढ़कर सहृदय पाठक का लचत्त लकसी रस या मनोवेग से पूणन हो जाए
। कलवता ‘सुरसरर सम’ प्रालण मात्र के ललए कल्याणकारी होती है । यही कलवता
की उपयोलगता भी है।
चलो इन्द्रधनुष हो जाएँ कलव जयप्रकाश ‘जय’ का प्रथम काव्य संग्रह है। इस संग्रह
में मनोभावों की सहज – सरल अलभव्यलि है । संग्रह की कलवताओ ं में जीवन की
अनभु लू तयों के अनेक रंग ह ैं । जयप्रकाश ‘जय’ की कलवताओ ं में आस्था ह,ै लवश्वास
है, प्रेम है, कमन है और अपरालजत इच्छा शलि भी है। एक ओर अभावों और संघषों
का प्राकट्य है तो दूसरी ओर इनसे जूझने का अदम्य साहस भी है जो लनरंतर संघषनरत
रहने की प्रेरणा देता है । जीवन एक प्रलतध्वलन कलवता में जय ललखते हैं-
चलो, इंद्रधनुष हो जाएं ” ( मेरी इक यावन कविताऐं) Chalo indradhanush ho jaye”Meri ekyavan Kavitayen”
₹525.00
Writer :जय प्रकाश ‘जय’ (Jay prakash ‘Jay’)
Edition : 1
Pager Size :6×8
No. of Pages :154
ISBN :978-93-93694-45-4
Format : Paperback
Description
Additional information
Dimensions | 25 × 18 × 2 cm |
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