उत्तरप्रदेश के बलिया जनपद के रघुनाथ पुर ग्राम में जन्में भाई कमलेश्वर ओझा जी को नियति ने साहित्यिक उर्जा से ओत-प्रोत भारत की उर्जाधानी के नाम से प्रसिद्ध मध्यप्रदेश के सिंगरौली को अपना कार्य क्षेत्र चुनने का सौभाग्य प्रदान किया। जहाँ कोयले की खदानों में अपना सब कुछ समर्पित करते हुए भी साहित्य के प्रति गहरा लगाव सृजन के नित नए सोपान चढ़ता ही गया । शनै-शनै कोयलांचल को इनके साहित्य प्रेम ने अपने रंग में गहरा रंग दिया। पद्य की लगभग सभी विद्या गीत, गजल, मुक्तक, दोहे, सवैया, घनाक्षरी, कहमुकरियों में गज़ब के शब्द विन्यास के सभी कायल होते रहे हैं।
हास्य और सामाजिक तथा राजनीति से जुड़े चुटीले व्यंगों का सृजन और उनको मंच पर अपनी विशेष शैली में प्रस्तुत करना ओझा जी के लिए सामान्य सी बात रही है।
2017 में ओझा भाई जी से मेरा परिचय एक काव्य समूह के गठन के दौरान जो हुआ वो अब गहरी मित्रता में परिणत हो चुका है। मित्रता क्या कहें ,एक परिवार ही हो गए। सहोदर भाई की तरह ही स्नेह और आदर , जिंदगी के दुःख- दर्द आपस में हम दोनों बाँटते रहते हैं , बस मीडिया का भला कहिए, भोगौलिक दूरियों का अब एहसास नहीं होता । उनके साथ बिताए ठाणे आवास पर कुछ घंटे अविस्मरणीय हैं । साहित्य सृजन में मुझे जब भी कभी दुविधा होती है , भाई ओझा जी से सटीक मार्गदर्शन हमेशा मिलता रहता है । उनका ये आभार भुला नहीं जा सकता ।
मुझे पूरा विश्वास है कि भाई ओझा जी का यह हास्य-व्यंग्य लेखों का संग्रह आपको अपने इर्द-गिर्द की दुनियाँ का सच्चा व सटीक आभास कराने में सफल होगा। संग्रह की आशातीत सफलता की शुभकामनाओं के साथ आप सभी पाठकों को नमन !