संपूर्ण प्रकृति आठ तत्वों से मिलकर बनी हुई है – वायु, जल, अग्नि, आकाश, पृथ्वी, मन, बुद्धि, अहंकार । प्रकृति में दृष्टिगत हो रही समस्त जड़ व चेतन पदार्थ प्रथम पांच तत्वों से निर्मित है और इन्हीं तत्वों में विलीन हो जाते हैं । अंतिम के तीन तत्व मन ,बुद्धि, अहंकार मानव को प्रभावित करते हैं । इन्हीं के सदुपयोग से मानव धरती पर देवतुल्य बन सकता है और दुरुपयोग से असुर तुल्य भी ।
प्रथम पांच तत्व मनुष्य के बाहरी शरीर के निर्माण में सहायक है किंतु मन, बुद्धि ,अहंकार के बिना यह शरीर मात्र एक पुतला ही है । उसमें चेतना का संचार नहीं होगा उसमें व अन्य प्राणी मात्र में भला क्या अंतर रह जाएगा ? इन्हीं तत्वों से मानव में विलक्षणता का प्रभाव होता है अपना स्वयं का व्यक्तित्व , चरित्र आज निर्माण कर सकने में समर्थ हो पाता है ।