मेरा दूसरा कहानी संग्रह ‘‘रिश्तों का पतझड़” आपके हाथ में है। मेरा प्रथम कहानी संग्रह ‘‘मुखौटे’ वर्ष 2022 में प्रकट हुआ। मुखौटे की सफलता ने मेरे भीतर के लेखक को जीवित रखा, तो अनुभूति ने उसे सांसें दी हैं। मुखौटे पर मध्य प्रदेश राष्ट्रभाषा प्रचार समिति हिन्दी भवन भोपाल द्वारा दिया गया स्व. नवीन प्रसाद श्रीवास्तव पुरस्कार ने मुझे नया कहानी संग्रह प्रकाशित करने की प्रेरणा दी। एक कलाकार अपने जीवन काल में कई प्रतिमाओं का निर्माण करता है और सभी प्रतिमाओं को बेहतर रूप देने का प्रयत्न करता है। उसका प्रयास होता है कि सभी प्रतिमाएं सुंदर और त्रुटि रहित हों। उसका प्रयास यह भी रहता है कि सभी प्रतिमाओं का रूप, रंग, आकार, प्रकार दूसरे से अलहदा हो, जिससे सभी प्रतिमाओं को अलग-अलग प्रतिष्ठा मिले। उसी प्रकार एक कहानीकार के रूप में मेरा प्रयास रहा है कि कहानी में मिट्टी भले ही एक हो किंतु सभी कहानियॉं का स्वाद अलहदा लगे। एक कलाकार की तरह मेरा भी प्रयास हर कहानी को सुंदर से सुंदरतर बनाना रहा है किंतु यह तो पाठक ही तय करेंगे कि कौन-सी कहानी उन्हें स्पर्श कर पाई। लेखन के संदर्भ में मेरा प्रयास ईमानदारी भरा रहा है, यह अवश्य कह सकता हूं।
मेरे पहले कहानी संग्रह ‘‘मुखौटे’ की तरह ‘‘रिश्तों का पतझड़’’ कहानी संग्रह भी मेरे हृदय के निकट है। कहानी और पात्र मेरे जीवन से बावस्ता हैं। मेरे पहले कहानी संग्रह की तरह इस संग्रह की कहानियों में भी मैंने सुखांत या कुनैन पर शक्कर की चाशनी चढ़ाने का प्रयास नहीं किया है। उन्हें खुला रखा है पाठकों के विवेक पर। मेरा हमेशा से यह मानना रहा है कि कहानीकार को उपदेशक की भूमिका न निभाकर कहानी में तटस्थ रहना चाहिए, तभी वह कहानी के साथ न्याय कर सकता है। साथ ही हमें अपना निर्णय पाठकों पर थोपने की बजाय उसके विवेक पर भरोसा करना चाहिए। कहानी संग्रह ‘‘रिश्तों का पतझड़’’ मैं अपने पिता श्री बालकृष्ण पिल्लई और माता श्रीमती कमला पिल्लई को समर्पित करता हूं। मैं मानता हूं कि मुझमें लेखन का अंकुरण कहीं न कहीं मेरी माता जी की देन हैं क्योंकि अहिन्दी भाषी होने के बाद भी उन्हें हिन्दी पत्र-पत्रिकायें पढ़ने में रुचि थी, जिसने मुझे भी हिन्दी भाषा की ओर आकृष्ट किया। दुखद है कि मेरे पहली पुस्तक के प्रकाशन के पूर्व दोनों इस दुनिया में नहीं थे किंतु मैं जानता हूं वे जहां भी होंगे उनका आशीर्वाद मेरे साथ है। उनके आशीर्वाद के बगैर मैं इस कार्य को पूर्ण नहीं कर सकता था।
इस संग्रह में मेरी पत्नी आरती का सहयोग भी उल्लेखनीय है। वह मेरी रचनाओं की पहली पाठक और आलोचक है। उसके सहयोग और साथ के बगैर लेखन को अंजाम तक पहुंचना मुश्किल था। उम्मीद है कि पहले कहानी संग्रह की तरह इस कहानी संग्रह को भी आप सभी का प्रतिसाद अवश्य मिलेगा।