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संवेदना से संवाद

150.00 120.00

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Edition :

आलोक पराशर

978-93-90390-48-9

135

A5

Paperback

Nitya Publications, Bhopal

First

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संवेदना से संवाद

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Description

आलोक पराशर की काव्ययात्रा का दूसरा पड़ाव:

बिहार के मुजफ्फरपुर निवासी कवि मित्र आलोक पराशर का दूसरा काव्य संग्रह “संवेदना से संवाद” सतहे-आम पर आनेवाला है। यह सुखद समाचार है। भाई आलोक पराशर हिंदी के उन कवियों में हैं जिनकी कविताओं में संवेदना भी है और तेवर भी। उनकी बिंब प्रधान नई कविता पर भी उतनी ही मजबूत पकड़ है जितनी निराला के केंचुल छंद पर। उनकी कविताओं में प्रणय का राग भी है और विछोह का दर्द भी। सामाजिक सरोकारों की कटु अनुभूति भी है और प्रकृति की छत्रछाया की शीतलता का अहसास भी। वे महाभारत के उपेक्षित महारथी कर्ण की वेदना भी महसूस करते हैं और अपराधबोध से ग्रसित ह्रदय के पश्चाताप के भाव को भी शब्दों में पिरोने की कला भी जानते हैं।

 

वे अपने प्रियपात्र से मुखातिब होकर कहते हैं :-

 

मैं नहीं करूंगा तुमसे कोई वादा

न अत्यधिक वार्तालाप

पर मुसीबत में क्षण भर रूककर

तुम मेरी हथेलियों पर अंगुली फेर कर

ढूढ लेना अपनी मुसीबत का हल

यकीन मानों, मैं नहीं छलूँगा तुम्हारे विश्वास को

क्योंकि मुझे पता है मेरी ही तरह

तुम्हारे सीने में भी एक दिल है।

नहीं दे सकते मुझे कुछ तुम तो

केवल सांत्वना के ही दो शब्द दे दो ना।

 

कवि अपनी प्रेयसी से चाँद तारे तोड़ कर लाने का वादा करना चाहता है न सात जन्मों तक साथ का आश्वासन चाहता है। सिर्फ सुख-दुःख में साथ देने का अनुरोध करता है। इतना विश्वास दिलाना चाहता है कि वह कभी किसी तरह का छल नहीं करेगा और उसकी हर मुसीबत का हल निकालने में मदद करेगा। इसके एवज में सिर्फ सांत्वना के दो शब्दों की माँग करता है।

 

आलोक पराशर की खासियत यह है कि वे आम बोलचाल की भाषा में अपनी संवेदना को इस कदर पिरो देते हैं कि वह सीधे ह्रदय से ह्रदय तक की यात्रा करने वाली सरिता सा प्रतीत होता है। अपने बचपन के निश्छल जीवन को याद करते हुए वे पूछते हैं-

 

क्या है कोई उपाय ?

जो मेरी ख़ामोशी तोड़कर

फिर से मुझे जीना सीखा दे

दिल से हर गिला शिकवा मिटा दे

चैन की नींद सोना सिखा दे

छोटी सी दुनिया में

मुझे खुश रहना सिखा दे

कोई है जो मेरा बचपन लौटा दे ?

 

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