” दोष धातुमल के संदर्भ में शरीर स्वरूप ” (Dosh dhatumal ke sandarbh me body sorup)

180

Editors : डा सुनील कुमार पाराशर , डा सुनिल मेवाड़े

Edition : 1

Size : A5

Pages : 91

ISBN : 978-93-90699-27-8

Format : Paper Back Ebook

Category:

Description

आचार्य इन्दु द्वारा शारीर स्थान अध्याय के प्रथम सूत्र की टीका में उक्त
कथन द्वारा, सूत्रस्थान के पश्चात शारीर स्थान को प्रारंभ करने का
तर्कसंगत कारण प्रस्तुत किया गया है। अर्थात सूत्र स्थान में वर्णित
(आयुर्वेद शास्त्र को समझने में) उपयोगी सूत्रों के ज्ञान के उपरांत हमारा
प्रथम कर्तव्य है कि हम शरीर के स्वरूप को समझें क्‍योंकि रोगों की
उत्पत्ति भी इसी शरीर में होती है जिनके निदान उपरांत ही चिकित्सा
कार्य संभव है तथा चिकित्सा का विषय भी यही शरीर है शरीर स्वरूप के
ज्ञान के बिना निदान तथा निदान के बिना चिकित्सा कार्य भी संभव नहीं
है।

प्रस्तुत ग्रंथ में शरीर स्वरूप का विभिन्न पहलुओं पर विशेष रूप से दोष
धातु मल के संदर्भ में शरीर स्वरूप को स्पष्ट करने का प्रयास किया गया
है इस हेतु विभिन्न संहिताओं में बिखरे हुये संदर्भ को एक जगह एकत्रकर
दोष धातु मल प्रत्येक का द्रव्य, गुण कर्म तीनों पहलुओं पर वर्णन किया
गया है प्रस्तुत ग्रंथ के प्रतिपाद्य विषय दोष धातु मल के संदर्भ में शरीर
स्वरूप को सरलता से ग्रहण करने के लिये एकत्व बुद्धि तथा प्रथकत्व
बुद्धि के उचित समन्वय की आवश्यकता है।